मेडिकल अल्ट्रासाउंड एक डायग्नोस्टिक इमेजिंग तकनीक है जिसमें साउंड वेव का उपयोग इमेजिंग के लिए किया जाता हैं इसे एक ट्रांसड्यूसर की मदद से शरीर में भेजा जाता है जिससे आंतरिक अंगो के चित्र तैयार किए जाते है अल्ट्रासाउंड के जरिए दो कोशिकाओं की दूरी तथा उनके निश्चीत स्थान आदि का पता लगाया जा सकता हैं
अल्ट्रासाउंड कराएं जाने का मुख्य उद्देश्य किसी बीमारी के जड़ का पता लगाना व पैथोलॉजी को हटाने में उपयोग किया जाता हैं गर्भवतीयों में किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड जांच को ऑब्स्टरिक अल्ट्रासोनोग्राफी कहा जाता है जो शुरूआती अल्ट्रासोनोग्राफी का मुख्य उद्देश्य था
अल्ट्रासाउंड ध्वनि तरंगों और उनकी फ्रीक्वेंसी से मिलकर बनाता है जो विशेष रूप से मनुष्य के सुनने की क्षमता से कहीं अधिक होते हैं [ >20,000 ]
अल्ट्रासाउंड इमेजेस को सोनोग्राम भी कहते है एक प्रोब के जरिए अल्ट्रासाउंड पल्सेस को कोशिकाओं तक शरीर अंदर भेजा जाता है ये ध्वनि तरंगे कोशिकाओं से टकराकर गूंज के रूप में अलग-अलग गुणों के साथ वापस परावर्तित होती है जिसे रिकॉर्ड कर चित्रत किया जाता है।
अल्ट्रासाउंड के जरिए अनेकों प्रकार की इमेजस तैयार किए जा सकते हैं सामान्यतः सबसे ज्यादा B-mode इमेज (जिसे ब्राइटनेस मोड कहा जाता हैं) इसमें कोशिकाओं को टू डाइमेंशनल cross-sectional रूप में चित्रित किया जाता है।
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सोनोग्राफी अल्ट्रासाउंड इमेजिंग क्या है विभिन्न प्रकार – Sonography kya hai | Ultrasound kya hota hai | types of ultrasonography
अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी एक इमेजिंग तकनीक है इसे अलग-अलग स्थानों में भिन्न रूप में प्रयोग किया जाता है चलिए अल्ट्रासोनोग्राफी के 16 विभिन्न प्रयोगो को जानते हैं –
एनएसथीसियोलॉजी – Anesthesiology
एनएसथीसियोलॉजी में अल्ट्रासाउंड का मुख्य उपयोग लोकल एनेस्थेटिक सोल्यूशन को नर्व सेल्स के करीब छोड़ने, सुई को सही दिशा में लगाने, अल्ट्रासाउंड इमेजिंग का प्रयोग किया जाता है।
एंजियोलॉजी – Angiology
एंजियोलॉजी और वस्कुलर मेडिसिन में “डुप्लेक्स अल्ट्रासाउंड” (B-mode इमेजिंग के साथ) डॉपलर फ्लो मेज़रमेंट का उपयोग अर्ट्रियल और वेनॉस डिजीज को ठीक करने में किया जाता है।
न्यूरोलॉजिक समस्याओं में जहां कैरोटिड अल्ट्रासाउंड का समानता उपयोग रक्त के मूल्यांकन और आशंकित स्टैनोस, कैरोटिड आर्टरीज के अंदर किया जाता हैं वही transcranial Doppler का उपयोग इंटरासेरेब्रल आर्टरीज फ्लो की इमेजिंग में किया जाता है
गंभीर समस्याओं नसों में रक्त के जम जाने पर डायग्नोसिस प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड बहुत अहम भूमिका निभाता है।
कार्डियोलॉजी – Cardiology
इखो-कार्डियोलॉजी भी एक महत्वपूर्ण तकनीक है जहां ह्रदय की संरचना तथा कार्यप्रणाली को समझा जाता हैं जैसे – स्टेनोसिस और इनसफिशिएंसी, स्ट्रेंथ ऑफ कार्डिक मसल्स कांट्रेक्शन, हाइपरट्रॉफी और डाईलेशन ऑफ मेन चैंबर (वेंट्रिकल और ऑट्रियम), जिसमें अल्ट्रासाउंड उपयोग महत्त्वपूर्ण होता है
एमरजेंसी मेडिसिन – Emergency medicine
एमरजैंसी मेडिसिन में भी अल्ट्रासाउंड का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता है जैसे – छोटी सांसो की समस्याओं में पलमोनरी और कार्डिएक में अंतर करना, ट्रुमा एग्जाम में सोनोग्राफी से मूल्यांकन करने
दूसरे उपयोग : एब्डोमिनल पेन का कारण पता करने जैसे – गालस्टोन, किडनी स्टोन; एमरजैंसी मेडिसिन रेसीडेंसी प्रोग्राम में अल्ट्रासाउंड के उपयोग के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।
गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और कोलोरेक्टल सर्जरी – Gastroenterology / colorectal surgery
एब्डोमिनल और एंडोएनल अल्ट्रासाउंड दोनों का उपयोग गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और कोलोरेक्टल सर्जरी में किया जाता है एब्डोमिनल सोनोग्राफी में एब्डोमिन के मुख्य अंग जैसे – पैंक्रियास, लीवर, गॉलब्लेडर, बाईल डक्ट, किडनी आदि की इमेजिंग की जाती है। हालांकि, साउंडवेव गैसेस के द्वारा अवरोधित हो जाते हैं।
गाइनोकोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स – Gynecology and obstetrics
गाइनोकोलॉजीक अल्ट्रासोनोग्राफी में मुख्यत: महिलाओं के पेल्विस की इमेजिंग की जाती है – यूट्रस, ओवरी, फेलोपियन ट्यूब, ब्लैडर
इसके लिए एक खास तरह के ट्रांसडयूसर का उपयोग एब्डोमिनल एरिया की इमेजिंग में किया जाता है ऑब्सटेट्रिकल सोनोग्राफी का आविष्कार 1950 से 1960 के दशक में “सर लेन डोनाल्ड” ने किया, जिसे प्रेगनेंसी में शिशु का विकास जांचने में प्रयोग किया जाता था।
ऑब्सटेट्रिक्स अल्ट्रासाउंड के मुख्य उपयोग :
- जेस्टेशनल ऐज पता करने के लिए
- भ्रूण को देखने के लिए
- भ्रूण की अवस्था, इंट्रायूटरिन या एक्टोपिक प्रेगनेंसी पता करने में
- प्लेजेंटा की लोकेशन पता करने में
- जुड़वां (मल्टीपल प्रेगनेंसी) पता करने
- किसी बड़े शारीरिक एबनॉर्मिलिटी को जानने
- शिशु विकास की जांच में
- शिशु के हरकतों और हार्टबीट पता करने में
- शिशु का लिंग जांचने के लिए
हेमोडायनामिक्स (रक्त संचारण) – Hemodynamics
रक्त वहिनियों में रक्त की तीव्रता जांचने जैसे – मिडल सेरेब्रल आर्टरी और डिसेंडिंग एरोटा आदि, इसमें एक कम खतरनाक व कम महंगे अल्ट्रासाउंड डॉपलर प्रोब को एक पोर्टेबल मॉनिटर से जोड़ा जाता हैं जो कि रक्त के बहाव को मूल्यांकन करता है उदाहरण – ट्रांसक्रेनियल डॉपलर, इसोफोगेल डॉपलर
ओटोलैरीगोलॉजी (सिर और गर्दन) – Otolaryngology
ओटोलैरीगोलॉजी जिसमें मुख्य रूप से सिर और गर्दन के बीमारियों का ईलाज किया जाता है जिसके लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता हैं।
थायराइड, पैरा थायराइड ग्लैंड, लिंफ नोड, स्लेवरी ग्लैंड आदि को हाई फ्रीक्वेंसी अल्ट्रासाउंड के जरिए आसानी से चित्रित किया जा सकता है। थायराइड ट्यूमर और लेशन्स में अल्ट्रासाउंड इमेजिंग बहुत जरूरी रहता हैं इसका उपयोग ऑपरेशन से पहले प्लानिंग व ऑपरेशन के बाद पेशेंट की जांच में की जाती है।
न्यूनातोलॉजी – Neonatology
न्यूनातोलॉजी में ट्रांसक्रीनिया डॉपलर का प्रयोग इंटरसेरेब्रल स्ट्रक्चरल एब्नॉर्मिल्टी की जांच करने के लिए किया जाता है जैसे आंतरिक चोट (hemorrhage), नवजात शिशुओं में इसके प्रयोग के लिए उनके सिर के किसी सॉफ्ट स्पॉट को लिया जाता है
ओफ्थलमोलॉजी (आंख) – Ophthalmology
ओफ्थलमोलॉजी और ऑप्टियोमेट्री के अंदर, अल्ट्रासाउंड के जरिए, मुख्य रूप से 2 तरह के आई एग्जाम किए जाते हैं –
- A – scan अल्ट्रासाउंड बायोमेट्रि : जिसे ए-स्कैन (amplitud scan) कहा जाता हैं A-mode आंखों की लंबाई की जानकारी देता है
- B-scan अल्ट्रासोनोग्राफी : बी-स्कैन आंखों के क्रॉस सेक्शनल व्यू और ऑर्बिट को दर्शाता है इसका उपयोग इमरजेंसी डिपार्टमेंट में रेटिनल और विट्रियस डिटैचमेंट के लिए भी किया जाता है
पल्मोनोलॉजी (फेफड़ों के) – Pulmonology
अल्ट्रासाउंड के जरिए, फेफड़ों की जांच अलग-अलग सेटिंगस में किया जाता है जैसे – क्रिटीकल केयर, एमरजेंसी मेडिसिन, ट्रूमा सर्जरी; इमेजिंग के तरीकों जैसे – बेडसाइड और एग्जामिनेशन टेबल में फेफड़ों में होने वाली अनेकों तरह की एबनॉर्मिलिटी का पता लगाया जाता है प्रोसीजर जैसे थोरेसिनथिस, नीडल एस्पिरेशन बायोप्सी और कैथेटर प्लेसमेंट को गाइड करने के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता हैं
यूरिनरी ट्रैक – Urinary track
यूरोलॉजी में अल्ट्रासाउंड का उपयोग रूटेनली किया जाता है जिससे यह पता लगाया जा सकें की ब्लैडर में फ्लूइड कितनी मात्रा में रुक (retain) हो रहा है। यदि सोनोग्राफी महिला की है तो गर्भाशय, अंडाशय, यूरिनरी ब्लैडर आदि स्कैन किए जाते है पुरुषों में सोनोग्राम ब्लैडर, प्रॉस्टेट, टेस्टिकल्स आदि की जानकारी देता है
यहां इमेजिंग 2 तरीकों से किए जाते है
- इंटरनली
- एक्सटर्नली
पेनिस एंड स्क्रोटम – Penis and scrotum
स्क्रोटल अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग टेस्टिकुलर पेन का कारण पता करने में किया जाता है पुरुष लिंग को समझने के लिए अल्ट्रासाउंड बहुत अच्छा विकल्प है जैसे – प्रियापाइज्म, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन
मस्क्यूलोस्केलेटल – Musculoskeletal
मस्क्यूलोस्केलेटल में अल्ट्रासाउंड का उपयोग टेंडन मसल्स, लाइग्मेंट, सॉफ्ट टिशूज तथा बोन सरफेस को जांचने में किया जाता है। ये लाइग्मेंट स्पटेंस, मसल्स स्ट्रेनस, ज्वॉइंट पैथोलॉजी को डायग्नोज करने में बहुत मददगार होता है एक्स-रे इमेजिंग का यह बहुत अच्छा विकल्प है
किडनीज – Kidney
नेफ्रोलॉजी – किडनीयों की अल्ट्रासोनोग्राफी करना किडनी सम्बंधित डिजीज डायग्नोज और मैनेजमेंट में बहुत आवश्यक होता हैं इनकी इमेजिंग भी बहुत आसानी से हो जाती है तथा किसी भी प्रकार के पैथोलॉजीकल बदलाव को अल्ट्रासाउंड के जरिए आसानी से ढूंढा जा सकता है
ध्वनिक तरंगों से अल्ट्रासाउंड इमेज कैसे बनता हैं | Ultrasound kaise hota hai
अल्ट्रासाउंड स्क्रीनिंग में ध्वनिक तरंगों से इमेज बनाने के तीन मुख्य स्टेप होते हैं –
- ध्वनि तरंगों को छोड़ना
- गुंजन को लेना
- गुंजन को चित्रित करना
ध्वनिक तरंगों का उत्पादन
अल्ट्रासाउंड मशीन में ध्वनि तरंगों का निर्माण एक पाईजोइलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर में होता है जो एक प्लास्टिक घर जैसे बॉक्स में होता है जो एक निश्चित समय अनुपात में छोटे व मजबूत इलेक्ट्रिकल इंपल्स भेजती है
ध्वनि वेग 1 से 18 mHz पर निर्भर करता हैं, हालांकि, 50 से 100 mHz ध्वनिक तरंगों का भी उपयोग शोध के तौर पर किया जा चुका हैं टेक्निक जिसे बायोमाइक्रोस्कॉपी कहते हैं जैसे – आंखों के अंदरूनी भागों का
पुराने समय के ट्रांसड्यूसर बीम को फिजिकल लेंस पर फोकस करते थे परंतु आज के ट्रांसड्यूसर में डिजिटल एंटीना एरे टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है (पाईजोइलेक्ट्रिक एलिमेंट) जहां ट्रांसड्यूसर अलग-अलग समय में कंपन उत्पन्न करता हैं जिससे तरंगों की दिशा और गहराई में बदलाव लाना संभव हो पाता हैं
इसी ट्रांसड्यूसर से अर्धवृतिकार आकार में ध्वनि तरंगे निकलती हैं जो शरीर अंदर तक जाती है तथा एक निश्चित गहराई पर केंद्र होकर लौटती हैं
ट्रांसड्यूसर के मुंह में लगा मटेरियल ध्वनिक तरंगों को शरीर अंदर जाने में मदद करता है (rubbery coating), यहां एक जेल मरीज के त्वचा और प्रोब के बीच में लगाया जाता है ताकि अल्ट्रासाउंड ट्रांसमिशन में बाधा न आए
क्योंकि, हवा से ट्रांसमिशन शरीर अंदर होने में अवरोध लाता है ध्वनि तरंगे कोशिकाओं के अलग-अलग परतों से परावर्तित होती तो वहीं छोटी संरचनाओं से वित्रित हो जाया करती हैं
ध्वनिक गुंजन को परावर्तन से प्राप्त करना
ध्वनि तरंगों का ट्रांसड्यूसर तक वापस आना उसी प्रकार होता हैं जैसे ध्वनि तरंगों को भेजा जाता है बस प्रक्रिया उल्टी हो जाती हैं। वापस आने वाली ध्वनिक तरंगें ट्रांसड्यूसर में कंपन लाती है और ट्रांसड्यूसर इन कंपन को इलेक्ट्रिक इंपल्सेस में बदल कर अल्ट्रासोनिक स्कैनर तक भेजता हैं जहां इसे डिजिटल इमेज के रूप में चित्रित किया जाता हैं
अल्ट्रासाउंड इमेज को तैयार करना
अल्ट्रासाउंड इमेज तैयार करने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैनर को प्राप्त की गई ध्वनिक तरंगों से इन दो चीजों का पता लगाना पड़ता है –
- कंपन प्राप्त करने में लगा समय – ट्रांसमिशन के बाद लगने वाला समय (समय और दूरी समनुपती होंगें)
- ध्वनिक गूंज कितना तीव्र था
जब अल्ट्रासोनिक्स स्कैनर इन दोनों विषयों का ज्ञान हो जाता हैं तब यह जान जाता है इमेज में किस पिक्सल को कहां और कितनी मात्रा में रखना है। गूंज की मजबूती कोशिका चित्रण में ब्राइटनेस को दर्शाती है। सफेद रंग मजबूत गूंज के लिए, काला कमजोर गूंज और ग्रे शेड बीच में जो कुछ होता हैं
इमेज को चित्रित करना
अल्ट्रासाउंड स्कैन से इमेज डिस्पले कराने के लिए इसे DICOM स्टैंडर्ड के जरिए दिखाया जाता है जो बहुत कम समय में हो जाता हैं
शरीर अंदर ध्वनिक तरंगों का प्रभाव -Ultrasound kya hota hai | Sonography kya hai
अल्ट्रासोनोग्राफी में एक प्रोब का इस्तेमाल किया जाता है एक ट्रांसड्यूसर जिससे ध्वनि तरंगों को भेजा जाता है जब ये ध्वनि तरंगें अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों टकराती है कुछ मात्रा में ध्वनि तरंगे वितत्रित्त होती तथा बहुत सी प्रोब की ओर परावर्तित हो जाती है
जितना समय किसी गूंज को प्रोब तक वापस परावर्तित होने में लगता है इसके जरिए उस कोशिका की गहराई का पता लगाया जाता है जिसके गूंज उत्पन्न हुई है।
ध्वनि बाधा जितनी बड़ी होगी, उससे उतनी ही तीव्र गूंज निकलेगी, लेकिन अगर ध्वनि तरंगें गैस या ठोस सतह से टकराती है इनके घनत्व के विभिन्न इतनी अधिक होती है कि ज्यादातर ध्वनि तरंगें परिवर्तित हो जाती है जिससे आगे प्रोसेस करना कठिन हो जाता है।
ध्वनि तरंगों की तीव्रता पार किए जाने वाले पदार्थ पर भी निर्भर करती है उसके ध्वनिक बधक्ता पर, हालांकि, यह भी माना जाता है ध्वनि का वेग 1540 m/s होता हैं इसी कारण एक अस्थिर कोशिका में साउंड बीम डिफोकस हो जाती है जिससे इमेज रेजोल्यूशन भी घट जाती है।
2D इमेज तैयार करने के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों को ट्रांसड्यूसर को घुमाते हुए छोड़ा जाता हैं या फिर एक 1-D फेस्ड ऐरे ट्रांसड्यूसर ध्वनि तरंगों को इलेक्ट्रॉनिकली छोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है। जिसके बाद परिणामों को एकत्रित कर उससे इमेज तैयार किया जाता है ये इमेज उस अंग का 2D चित्रण दिखाता है।
3D इमेज तैयार करने के लिए एक कतार में 2D इमेजेस लिए जाते हैं अधिकांशत: एक मुख्य रूप से डिजाइन प्रोब जो 2D इमेज मैकेनिकली स्कैन करता है। क्योंकि मेकेनिकल स्कैनिंग बहुत धीमा प्रोसेस होता है हाल ही में एक 2-D फेस्ड ऐरे ट्रांसड्यूसर का निर्माण किया गया है जिससे बहुत तेजी से इमेजेस तैयार किए जा सकते हैं और लाइफ 3D इमेजेस भी लिए जा सकते हैं।
Doppler : डॉप्लर सोनोग्राफी का उपयोग रक्त के बहाव और मसल्स मोशन को स्टडी करने के लिए किया जाता है इसमें विभिन्न गतियों को रंग के माध्यम से सुविधा के लिए चित्रित किया जाता है।
MODES in ultrasound and sonography
अनेकों प्रकार के मोड्स का इस्तेमाल मेडिकल इमेजिंग में किया जाता है जैसे –
- A-mode : amplitude mode
- B-mode : Brightness mode
- C-mode :
- M-mode : motion mode
- Pulse inversion mode
- Harmonic mode
अल्ट्रासोनोग्राफी के फायदे और कमिया | Ultrasound in hindi
इमेजिंग के लगभग सभी तौर तरीको को देखते हुए अल्ट्रासोनोग्राफी के कुछ पॉजिटिव तथा कुछ नेगेटिव बाते हैं
Strength : ——————
- मसल्स, सॉफ्ट टिशू और बोन सर्फेस को आसानी से इमेजिंग किया जा सकता है, खासकर द्रव और ठोस पदार्थ के बीच की लाइन को
- लाइव इमेजेस डायनमिकली तैयार किए जाते है जिसे अल्ट्रासाउंड बायोप्सी और इंजेक्शन गाइड करने में उपयोग किया जाता हैं
- ऑर्गन स्ट्रक्चर पता लगा सकते हैं
- सावधानी से उपयोग किए जाने पर लंबी अवधि में नुकसानदायक नहीं
- एक ही टिशू के बहुत सारे वैरिएंट लिए जा सकते हैं
- इसके इक्विपमेंट सानी से उपलब्ध हैं
- स्पेटीयल रेजोल्यूशन अन्य इमेजिंग तरीकों की तुलना हाई फ्रीक्वेंसी अल्ट्रासाउंड में अच्छे होते हैं
- रियल टाइम इमेज लेने के लिए अल्ट्रासाउंड बेहतर विकल्प है
Weakness :—————–
- सोनोग्राफी से हड्डियों के पार इमेजिंग लेना कठीन है
- ट्रांसड्यूसर और ऑर्गन के बीच गैस मौजूद होने पर इमेजिंग खराब मिलती है
- हड्डियों व गैसेज की अनुपस्थिति के बावजूद गहराई में स्कैनिंग अभी भी लिमिटेड हैं
- मोटे लोगों में इमेजिंग क्वालिटी और एक्यूरेसी लिमिटेड रहती हैं कारण फेट सेल्स
- सोनोग्राफी को एक प्रोफेशनल व्यक्ति ही सही और सटीकता से कर सकत हैं
- 80% सोनोग्राफर (RSI) repetitive strain injuries से पीड़ित होते है और (WMSD) work related musculoskeletal disorder
अल्ट्रासोनोग्राफी के खतरे और नुकसान – Risk and side-effects of ultrasonography in hindi
डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) के मुताबिक अल्ट्रासोनोग्राफी कराना सामान्यतः सुरक्षित होता है
डायग्नोस्टिक अल्ट्रासाऊंड को इमेजिंग के लिए एक सेफ, इफेक्टिव और हाईली फ्लैक्सिबल तरीका माना जाता है जो आंतरिक अंगों के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करने में सक्षम है
भ्रूण जांच के लिए भी प्रेगनेंसी में डायग्नोस्टिक अल्ट्रासाउंड पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है, हालांकि, इस प्रोसीजर को तभी किया जाना चाहिए जब मेडिकल जरूरत हो एवम् निम्न अल्ट्रासोनिक एक्सपोजर सेटिंग का उपयोग किया जाना चाहिए
हालांकि, अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं कि अल्ट्रासाउंड भ्रूण के लिए हानिकारक है लेकिन मेडिकल अथॉरिटी अल्ट्रासाउंड को फेटल वीडियो, इमेजेस, लिंग जांच में उपयोग से सख्त रोकती हैं
Hindiram के कुछ शब्द
Ultrasound kya hota hai | Sonography kya hai : अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी दोनों एक ही तकनीक है जिसका उपयोग आंतरिक अंगो के इमेजेस लेने तथा उनके कार्यप्रणाली की जांच अथवा किसी बीमारी को डायग्नोज करने के लिए उपयोग किया जाता हैं